http://www.bbc.co.uk/hindi/pakistan/2012/05/120523_pakistan_doctor_arrested_jk.shtml
ओसामा और पाकिस्तान
बुधवार, 23 मई, 2012 को 19:00 IST तक के समाचार
ओसामा बिन लादेन को पकड़वाने में अमरीका की मदद करने वाले डॉक्टर को पाकिस्तान की एक अदालत ने 30 साल की जेल की सजा सुनाई है. उन पर 3500 डॉलर का जुर्माना भी लगाया गया है.
शकील अफरीदी नाम के इस डॉक्टर पर राजद्रोह का आरोप था. सरकारी पक्ष का कहना था कि डॉक्टर शकील अफरीदी ने वेक्सीनेशन लगाने का फर्जी कार्यक्रम चलाया.
ओसामा बिन लादेन 2011 के मई में एबटाबाद में अमरीकी हेलिकॉप्टरों द्वारा किए गए मरीन सील्स के हमले में मारे गए थे.
बिन लादेन के मारे जाने के बाद अमरीका और पाकिस्तान के बीच मतभेद खुलकर सामने आ गए थे.
ओसामा के पाकिस्तान में छिपे होने से पाकिस्तान को काफी शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा था. पाकिस्तान का मानना है कि अमरीकी हमला पाकिस्तान की संप्रभुता पर हमला था.
"पाकिस्तान के बाहर स्थित पर्यवेक्षकों को चिंता है कि बिन लादेन के मारे जाने के बाद जिन लोगों को हिरासत में लिया गया है उनमें से अधिकतर वो हैं जो ओसामा को पकड़वाने में मदद कर रहे थे. निशाना उन पर नहीं है जिन पर उन्हें बचाने का शक है"
बीबीसी के अलीम मकबूल
बीबीसी के अलीम मकबूल का कहना है, "पाकिस्तान के बाहर स्थित पर्यवेक्षकों को चिंता है कि बिन लादेन के मारे जाने के बाद जिन लोगों को हिरासत में लिया गया है उनमें से अधिकतर वो हैं जो ओसामा को पकड़वाने में मदद कर रहे थे. निशाना उन पर नहीं है जिन पर उन्हें बचाने का शक है."
डॉक्टर के पक्ष में अमरीका
अमरीकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने डॉक्टर अफरीदी की रिहाई की गुहार लगाई थी और कहा था कि वे पाकिस्तान और अमरीका के हितों के लिए काम कर रहे थे.
अमरीका के रक्षा मंत्री लिओन पैनेटा ने इस साल जनवरी में बताया था कि डॉक्टर शकील डीएनए के नमूने इकठ्ठा कर रहे थे और लक्ष्य था कि संदिग्ध परिसर से किसी बच्चे का डीएनए मिल जाए तो उन्हें कोई सुराग मिले. लेकिन ये स्पष्ट नहीं है कि उन्हें इस बारे में जानकारी थी या नहीं कि इस पूरी प्रक्रिया का मकसद ओसामा को पकड़ना था.
पैनेटा ने सीबीएस टेलीवीजन के कार्यक्रम ‘सिक्सटी मिनट्स’ में इस मामले के बारे में बातचीत की थी.
लिओने पैनेटा ने कहा था, “डॉक्टर शकील किसी भी तरह पाकिस्तान को नुकसान नहीं पहुंचा रहे थे...पाकिस्तान सरकार द्वारा उनके खिलाफ इस तरह की कार्रवाई करना मेरे हिसाब से सरकार की बहुत बड़ी गलती है क्योंकि वे तो आतंकवाद के खिलाफ हमारी मदद कर रहे थे.”
एबटाबाद में लादेने के मारे जाने के बाद ही डॉक्टर शकील को पाकिस्तानी सरकार के खिलाफ षडयंत्र करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया था.
डॉक्टर शकील अफरीदी को खैबर एजेंसी के न्यायालय ने दोषी पाया है.
http://www.bbc.co.uk/hindi/pakistan/2012/05/120430_obl_spl_nizami_ak.shtml
ReplyDeleteओसामा का अंत और पाकिस्तान
आरिफ़ निज़ामी
वरिष्ठ पत्रकार
बुधवार, 2 मई, 2012 को 11:44 IST तक के समाचार
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ऐबटाबाद के इसी घर में रह रहे ओसामा बिन लादेन को अमरीकी सैनिकों ने रात में कार्रवाई कर मारा
पिछले साल दो मई को, सारी दुनिया, जिनमें अधिकतर पाकिस्तानी भी शामिल हैं, ये बात पता लगते ही स्तब्ध रह गई कि 2002 के अक्तूबर में तोरा बोरा की पहाड़ियों से भागने के बाद दुनिया का सबसे वांछित चरमपंथी ओसामा बिन लादेन सारे समय पाकिस्तान में ही बैठा था.
अमरीकी नौसेना की विशेष टुकड़ी – सील्स – ने दो मई की रात को लादेन को फौजियों के गढ़ वाले शहर ऐबटाबाद में धावा बोलकर मार डाला जहाँ वो एक घर में अपने परिवार के साथ रह रहा था.
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पाकिस्तान
पाकिस्तानी सेना और पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई को इस अभियान की कोई खबर नहीं थी क्योंकि आतंक के विरूद्ध लड़ाई में उसके निकट सहयोगी अमरीका ने उन्हें साथ नहीं लिया था – ताकि कहीं आईएसआई में लादेन के रहनुमा उसे इस अभियान की भनक ना दे दें.
जिस गुपचुप तरीके से अल कायदा सुप्रीमो को मारा गया वो इस बात का संकेत था कि कैसे वाशिंगटन और इस्लामाबाद के बीच दरार आ चुकी है.
ReplyDeleteअगले एक साल में उनके भरोसे में आई ये दरार और चौड़ी हो गई है.
इसकी शुरूआत 2011 की जनवरी में सीआईए के एक कॉन्ट्रैक्टर रेमंड डेविस की गिरफ़्तारी से हुई, ये बढ़ी दो मई को ओसामा बिन लादेन को मारे जाने की घटना से, और ये चरम पर पहुँची जब इसी साल नंवबर में अमरीकी सेना ने अफगान सीमा के पास सलाला में 24 पाकिस्तानी सैनिकों को एक झड़प में मार डाला.
इस कारण ना केवल पाकिस्तान में नेटो की सप्लाई पर रोक लग गई बल्कि इसके बाद से सीआईए और आईएसआई के संबंधों में पूरी तरह से गतिरोध बन गया है.
इस हिसाब से ऐबटाबाद की घटना एक तरह की निर्णायक रेखा थी. इसके बाद जो हुआ, उनसे साफ हो गया कि अमरीका के साथ पाकिस्तान के रिश्तों में सुधार की गुंजाईश खत्म हो चुकी है.
बेईज़्ज़ती
अपने आप को दुनिया की एक श्रेष्ठ जासूसी संस्था समझनेवाली आईएसआई को बेइज्जत होना पड़ा, जब उन्हें लगा कि उस सीआईए ने उनके साथ छल किया जिसके साथ वो 11 सितंबर के हमले के बाद से सारी खुफिया सूचनाएँ बाँटने का दावा करते थे.
सेना प्रमुख जेनरल कयानी के करीबी माने जाते रहे आईएसआई प्रमुख शुजा पाशा की विदाई हो चुकी है
ऐबटाबाद घटना के बाद आईएसआई की मिट्टी पलीद हो गई. ऐसा दावा किया गया कि उसे इस बात की कोई हवा नहीं थी कि ओसामा बिन लादेन काकुल सैन्य अकादमी के बगल में ही मौजूद एक घर में अपनी तीन बीवियों, आठ बच्चों और एक पोते के साथ रह रहा है.
अब अगर उसे सचमुच लादेन के पाकिस्तान में होने की खबर नहीं थी तो ये एक बहुत ही बड़ी खुफिया चूक थी. और अगर आईएसआई को ये पता था तो फिर उसपर सांठगांठ और दोहरेपन का आरोप लगता.
आईएसआई प्रमुख जेनरल शुजा पाशा, जो कि सेना प्रमुख अशफाक परवेज कयानी के करीबी सहयोगी हैं, उन्हें आशा थी कि उनका कार्यकाल एक साल के लिए बढ़ाया जाएगा.
लेकिन पिछले महीने उनकी विदाई हो गई. मगर, पाकिस्तान की राजनीति में उनकी विवादास्पद भूमिका पर चर्चा अभी भी जारी है.
ये बात सामने आ चुकी है कि पाशा पिछले अक्तूबर में, जेनरल कयानी से सलाह के बाद, मेमोगेट स्कैंडल के विवादास्पद किरदार मंसूर एजाज़ से पूछताछ करने के लंदन गए थे.
पाकिस्तानी मूल के अमरीकी व्यवसायी मंसूर एजाज़ के साथ उनकी इस गोपनीय बैठक के बारे में पाकिस्तान सरकार को कोई जानकारी नहीं थी.
इस विवाद के कारण अमरीका में पाकिस्तानी राजदूत हुसैन हक्कानी को कुर्सी गँवानी पड़ी जिनपर कथित रूप से एक मेमो लिखने का आरोप लगा जिसमें कि कथित रूप से राष्ट्रपति ज़रदारी को सेना की नाराजगी से बचाने के लिए अमरीका से हस्तक्षेप करने का आग्रह किया गया था.
असर
"अमरीकी हमले से ना केवल पाकिस्तान और अमरीका के संबंधों में खटास आई, बल्कि इससे पाकिस्तान के भीतर सेना और सरकार के बीच भी मतभेद गहरा गए."
ये स्पष्ट है कि ऐबटाबाद पर अमरीकी हमले से ना केवल पाकिस्तान और अमरीका के संबंधों में खटास आई, बल्कि इससे पाकिस्तान के भीतर सेना और सरकार के बीच भी मतभेद गहरा गए.
इससे पूर्व पाकिस्तान की हालत ये थी कि यदि ऐसा कोई मतभेद हुआ होता, तो मामला इतना आगे बढ़ने से पहले ही बगावत हो जाती.
ऐबटाबाद में उस परिसर को मिट्टी में मिला दिया गया है जहाँ लादेन बरसों तक एक परिवार वाले आदमी के रूप में रहा.
लेकिन इससे पाकिस्तानी सेना के प्रतिष्ठान की उस छवि में जुड़ा वो नया अध्याय नहीं मिट सकता जिस छवि में वो पता नहीं कितनी ही बार और पता नहीं कितनी ही घटनाओं को कभी बनाती तो कभी मिटाती रही है.
उधर पाकिस्तान में सुप्रीम कोर्ट की ओर से ऐबटाबाद की घटना की जाँच के लिए नियुक्त न्यायिक आयोग का काम अभी तक पूरा नहीं हुआ है.
पाकिस्तान में ऐसे लोगों की संख्या गिनती की होगी जिनको ये भरोसा होगा कि जाँच से कुछ ऐसा निकलेगा जिसकी ऊँगली राष्ट्रपति की ओर हो सकेगी.