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मेरा जन्म एक गरीब परिवार में हुआ। ऐसा अकसर होता था, जब हमारे पास खाने तक को कुछ नहीं होता था। जब भी हम खाने बैठते, मां अपने हिस्से का खाना भी मुझे दे देती। जब वह अपना खाना मेरी प्लेट में डाल रही होती थी, तो कहती- बेटा, यह खाना भी तू खा ले। मुझे आज भूख जरा कम है।
यह मां का पहला झूठ था।
मैं थोड़ा बड़ा हुआ। मेरी शिक्षा ठीक तरह से चलती रहे, इसके लिए उसने एक माचिस बनाने के कारखाने में काम करना शुरू कर दिया। वहां से एक दिन वह माचिस के खाली डिब्बे घर लाई, जिन्हें तीलियों से भरा जाना था। काम बहुत ज्यादा था, सो करते-करते रात हो गई, लेकिन काम खत्म नहीं हुआ। देर रात जब मेरी आंख खुली तो मैंने देखा कि मां अब भी मोमबत्ती जलाकर माचिस के डिब्बों में तीलियां भर रही है। मुझे बड़ा दुख हुआ। मैंने उससे कहा- मां, अब सो जाओ। वैसे भी बहुत रात हो चुकी है और तुम थक भी गई होगी। यह काम सुबह कर लेना। मां बोली- नहीं, नहीं, मुझे नींद नहीं आ रही है। मैं थकी हुई भी नहीं हूं। तू आराम से सो जा।
यह मां का दूसरा झूठ था।
बात उस दिन की है, जब मुझे परीक्षा देने जाना था। मां भी मेरे साथ गई। जब तक परीक्षा चली, मां ने तपती गर्मी में स्कूल के बाहर मेरा इंतजार किया। जब परीक्षा खत्म होने हुई तो मैं उससे मिलने आया। मां ने मुझे एक गिलास ठंडा शरबत दिया, जिसे वह घर से करके लाई थी। मां को गर्मी से परेशान पाकर मैंने अपना गिलास उसे दे दिया और कहा- मां, यह शरबत आप पी लो। मां ने कहा- नहीं, नहीं, यह तेरे लिए है। मेरा बिल्कुल मन नहीं है अभी शरबत पीने का।
मां ने तीसरी बार झूठ बोल दिया।
पिताजी की मौत के बाद मां को अकेले ही मेरी परवरिश करनी पड़ी। मेरी पढ़ाई का खर्च और दूसरी जरूरतों के लिए मां को दिन-रात काम करना पड़ता। पिताजी के जाने के बाद अकेलापन उसकी जिंदगी में आ ही गया था। पड़ोस की आंटी हमारी मदद करती थीं, फिर भी हालात सुधरने का नाम नहीं ले रहे थे। आंटी ने सलाह दी कि मां को दूसरी शादी कर लेनी चाहिए, जिससे उन्हें भावनात्मक सहारा मिलेगा। मां ने इनकार कर दिया। उसने कहा- मुझे किसी के साथ की जरूरत ही महसूस नहीं होती।
यह मां का चौथा झूठ था।
मेरी पढ़ाई पूरी हो गई और मुझे विदेश में नौकरी मिल गई। इस वक्त मेरी मां को काम छोड़कर रिटायर हो जाना चाहिए था, लेकिन उसने ऐसा कुछ नहीं किया। उसने काम करना जारी रखा। फिर भी मैं हर महीने उसे पैसे भेज देता था। हैरानी की बात यह थी कि हमेशा वह मेरे पैसे वापस मुझे ही भेज देती थी और कहती कि मुझे पैसे की जरूरत नहीं है। मेरे पास भरपूर पैसे हैं।
यह मां का पांचवां झूठ था।
मास्टर्स डिग्री हासिल करने के लिए मैंने अपनी पार्ट टाइम पढ़ाई जारी रखी। इस डिग्री को पूरा कर लेने के बाद मेरी सैलरी एकदम बढ़ गई। मैंने फैसला कर लिया कि अब मां को अपने साथ ले आऊंगा और उसकी पूरी सेवा करूंगा। लेकिन मां अपने बेटे को परेशान नहीं करना चाहती थी। कहने लगी- मैं विदेशी रहन-सहन की आदी नहीं हूं। वहां मेरा मन नहीं लगेगा और न ही मुझसे वहां रहा जाएगा। इसलिए मैं यहीं ठीक हूं।
मां ने छठी बार झूठ बोला था।
बुढ़ापे में मां को कैंसर हो गया। उसे अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। सात समंदर पार से मैं मां को देखने गया। मां बिस्तर पर लेटी थी। मुझे देखकर उसने मुस्कराने की कोशिश की, यह जताने के लिए कि उसे कुछ नहीं हुआ है। मैं मन ही मन टूट गया। वह इतनी कमजोर नजर आ रही थी। उसने कहा- रोओ मत बेटा, मुझे कोई दिक्कत नहीं है।
यह मां का सातवां झूठ था।
बार-बार 'झूठ' बोलती है मां
13 May 2012, 1450 hrs IST,नवभारत टाइम्समेरा जन्म एक गरीब परिवार में हुआ। ऐसा अकसर होता था, जब हमारे पास खाने तक को कुछ नहीं होता था। जब भी हम खाने बैठते, मां अपने हिस्से का खाना भी मुझे दे देती। जब वह अपना खाना मेरी प्लेट में डाल रही होती थी, तो कहती- बेटा, यह खाना भी तू खा ले। मुझे आज भूख जरा कम है।
यह मां का पहला झूठ था।
मैं थोड़ा बड़ा हुआ। मेरी शिक्षा ठीक तरह से चलती रहे, इसके लिए उसने एक माचिस बनाने के कारखाने में काम करना शुरू कर दिया। वहां से एक दिन वह माचिस के खाली डिब्बे घर लाई, जिन्हें तीलियों से भरा जाना था। काम बहुत ज्यादा था, सो करते-करते रात हो गई, लेकिन काम खत्म नहीं हुआ। देर रात जब मेरी आंख खुली तो मैंने देखा कि मां अब भी मोमबत्ती जलाकर माचिस के डिब्बों में तीलियां भर रही है। मुझे बड़ा दुख हुआ। मैंने उससे कहा- मां, अब सो जाओ। वैसे भी बहुत रात हो चुकी है और तुम थक भी गई होगी। यह काम सुबह कर लेना। मां बोली- नहीं, नहीं, मुझे नींद नहीं आ रही है। मैं थकी हुई भी नहीं हूं। तू आराम से सो जा।
यह मां का दूसरा झूठ था।
बात उस दिन की है, जब मुझे परीक्षा देने जाना था। मां भी मेरे साथ गई। जब तक परीक्षा चली, मां ने तपती गर्मी में स्कूल के बाहर मेरा इंतजार किया। जब परीक्षा खत्म होने हुई तो मैं उससे मिलने आया। मां ने मुझे एक गिलास ठंडा शरबत दिया, जिसे वह घर से करके लाई थी। मां को गर्मी से परेशान पाकर मैंने अपना गिलास उसे दे दिया और कहा- मां, यह शरबत आप पी लो। मां ने कहा- नहीं, नहीं, यह तेरे लिए है। मेरा बिल्कुल मन नहीं है अभी शरबत पीने का।
मां ने तीसरी बार झूठ बोल दिया।
पिताजी की मौत के बाद मां को अकेले ही मेरी परवरिश करनी पड़ी। मेरी पढ़ाई का खर्च और दूसरी जरूरतों के लिए मां को दिन-रात काम करना पड़ता। पिताजी के जाने के बाद अकेलापन उसकी जिंदगी में आ ही गया था। पड़ोस की आंटी हमारी मदद करती थीं, फिर भी हालात सुधरने का नाम नहीं ले रहे थे। आंटी ने सलाह दी कि मां को दूसरी शादी कर लेनी चाहिए, जिससे उन्हें भावनात्मक सहारा मिलेगा। मां ने इनकार कर दिया। उसने कहा- मुझे किसी के साथ की जरूरत ही महसूस नहीं होती।
यह मां का चौथा झूठ था।
मेरी पढ़ाई पूरी हो गई और मुझे विदेश में नौकरी मिल गई। इस वक्त मेरी मां को काम छोड़कर रिटायर हो जाना चाहिए था, लेकिन उसने ऐसा कुछ नहीं किया। उसने काम करना जारी रखा। फिर भी मैं हर महीने उसे पैसे भेज देता था। हैरानी की बात यह थी कि हमेशा वह मेरे पैसे वापस मुझे ही भेज देती थी और कहती कि मुझे पैसे की जरूरत नहीं है। मेरे पास भरपूर पैसे हैं।
यह मां का पांचवां झूठ था।
मास्टर्स डिग्री हासिल करने के लिए मैंने अपनी पार्ट टाइम पढ़ाई जारी रखी। इस डिग्री को पूरा कर लेने के बाद मेरी सैलरी एकदम बढ़ गई। मैंने फैसला कर लिया कि अब मां को अपने साथ ले आऊंगा और उसकी पूरी सेवा करूंगा। लेकिन मां अपने बेटे को परेशान नहीं करना चाहती थी। कहने लगी- मैं विदेशी रहन-सहन की आदी नहीं हूं। वहां मेरा मन नहीं लगेगा और न ही मुझसे वहां रहा जाएगा। इसलिए मैं यहीं ठीक हूं।
मां ने छठी बार झूठ बोला था।
बुढ़ापे में मां को कैंसर हो गया। उसे अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। सात समंदर पार से मैं मां को देखने गया। मां बिस्तर पर लेटी थी। मुझे देखकर उसने मुस्कराने की कोशिश की, यह जताने के लिए कि उसे कुछ नहीं हुआ है। मैं मन ही मन टूट गया। वह इतनी कमजोर नजर आ रही थी। उसने कहा- रोओ मत बेटा, मुझे कोई दिक्कत नहीं है।
यह मां का सातवां झूठ था।
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