રામ મંદીર, અયોધ્યા, વડા પ્રધાન, બીજેપી, જનતા દળ, શીવસેના.......
લોકસભાની ચુંટણી નજદીક આવી રહી છે. શીવસેનાને ઉતાવળ છે એનડીએ ગઠબંધન વડા પ્રધાનના ઉમેદવારનું નામ જલ્દી નક્કી કરે.
રાષ્ટ્રપતીની ચુંટણીમાં શીવસેનાએ પહેલાં કોંગ્રેસના ઉમેદવાર પ્રતીભા પાટીલ અને હમણાં પ્રણવ મુખરજીને મત આપેલ. જનતા દળ યુનાઈટેડના
નેતા શરદ યાદવ એનડીએ ગઠબંધન મોર્ચાના કન્વીનર કે સંયોજક છે અને
બીજેપીમાંથી મોદીને વડાપ્રધાનના ઉમેદવાર માટે રોજ સમાચાર આવે છે.
શીવસેનાના બાળ
ઠાકરેએ અગાઉ બીજેપીના નેતાઓ અને પાર્ટી માટે ઘણીં વખત અપમાન જનક વાતો કરી
છે જે એના વારસદારોએ ચાલુ રાખેલ છે. આ શીવસેના ભાષાવાદ અને પ્રાંતવાદના
નામે મતો મેળવે છે અને ધર્મના નામે મતો માંગવા બદ્દલ બાળ ઠાકરેને છ વરસ
માટે મતદાન માટે અયોગ્ય ઠરવવામાં આવેલ. હવે કુમ્ભના મેળામાં સંતો કે એ
હીન્દુઓના પ્રતીનીધીઓ પાછા મોદી બાબત કંઈક ખીચડી રાંધવાના છે.
મુહમ્મદ
ગજનવીઓ અને મુહમ્મદ ગોરીઓ અફઘાનીસ્તાનના ખૈબરઘાટથી લુંટ માટે આવતા અને
મંદીરોમાં લુંટ ચલાવતા. આવું લગભગ ૧૦૦૦ વર્ષ ચાલ્યું. ઔરંગઝેબે લુંટ, રાજ
સાથે ધર્મ પરીવર્તનનો ધંધો ચલાવ્યો એનાથી હીન્દુ પ્રજામાં અસંતોષ થયો અને
છેવટે મોગલ સામ્રાજય પડી ભાંગ્યું. અંગ્રેજો આવ્યા અને લુંટને બદલે વેપાર
કરવા લાગ્યા.
પછીતો મહાત્મા ગાંધીએ બધાથી છુટકારો મેળવવા ચડવળ કરી અને ૧૫મી ઓગસ્ટ ૧૯૪૭ના અંગ્રેજોને જવું પડયું. ૨૬.૧.૧૯૫૦થી લોકોના પ્રજાસતાક રાજ્યની શરુઆત થઈ અને જવાહરલાલ નેહરુને વડા પધાન બનાવવામાં આવેલ.
છઠ્ઠી
ડીસેમ્બર, ૧૯૯૨ના લાલ કૃષ્ણ અડવાણી અને બીજા સાથીદારોના ઝનુની હીન્દુ
ટોળાએ ઉત્તર પ્રદેશમાં અયોધ્યામાં બાબરી મસ્જીદના ઢાંચાને તોડી નાખેલ
ત્યારથી ગજનવીઓ, ગોરીઓ, મોગલો, અંગ્રેજો, મંદીરોમાં લુંટ, ગાંધી, નેહરુ બધું ભુલાઈ ગયું છે અને છઠ્ઠી ડીસેમ્બર ૧૯૯૨થી બાબરી મસ્જીદનો ઢાંચો અને રામ મંદીર મુખ્ય મુદ્દો બની ગયો છે.
ઉત્તર પ્રદેશની હાઈ કોર્ટે બાબરી ઢાંચા અને રામ મંદીર બાબત ચુકાદો આપ્યો અને હવે આખી મેટર સુપરીમ કોર્ટમાં પડી છે.
૨૦૧૩
કે ૨૦૧૪માં લોકસભાની ચુંટણી પહેલાં હવે રોજ બાબરી અને રામનું ભુત ધુણસે.
રામ મંદીરનો મુદ્દો ઉભો થસે અને કોંગ્રેસને પોતાની તરફેણમાં વડા પ્રધાનના
પદ માટે મતો મળસે.
બીજેપી, જનતા દળ, શીવસેનાના બધા સ્વપનાઓની હાલત
જોવા જેવી થસે. મનોહર જોષીને ઓળખો છો? એ મહારાષ્ટ્રમાં મુખ્ય પ્રધાન અને
લોકસભામાં સ્પીકર તરીકે નીયુક્ત થયેલ. ચુંટણીમાં કાર્યકરોને વડાપાંવનો
નાસ્તો કરાવવામાં લોભ કર્યો અને હાર ખમવી પડી.
બાબરી મસ્જીદના ઢાંચાને તોડવા બદ્દલ એનડીએના ઘટકની એજ હાલત થવાની છે.
રામ મંદીર તો કોને ખબર ક્યારે બનશે?
સતા માટે એનડીએ પાસે બીજા ધોરણના ગણીતના દાખલા કરવા પડશે. લોકસભામાં જે બહુમતી રજુ કરસે એનો નેતા વડાપ્રધાન બનશે. એનડીએ પરીક્ષામાં જરુર નાપાસ થશે. બોલો સીયારામકી જય !!!
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महाकुंभ में शुरू हुआ मोदी का विरोध, कुछ संत नहीं करेंगे स्वागत
જુઓ દૈનીક જાગરણના આ મહત્વના સમાચાર, ઈતીહાસ, : नई दिल्ली। चुनाव आते ही भाजपा को राम मंदिर का भूत याद आने लगता है। इलाहाबाद का कुंभ भाजपा के सियासत को रास्ता दिखा रहा है। भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने अपने बयान के जरिए भाजपा के नेताओं को रोड मैप बता दिया। राजनाथ सिंह ने कहा है कि राम मंदिर करोड़ों लोगों की आस्था है। राम जन्मभूमि पर ही राम मंदिर बनना चाहिए।
चुनाव से पहले भाजपा ने विवाद के बोतल से निकाला राम मंदिर का जिन्न
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धर्मसंसद में 'मोदी बनें पीएम' की गूंज
Feb 8, 2013, 09.00AM IST
वरिष्ठ संवाददाता॥ इलाहाबाद : गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की बढ़ती हुई लोकप्रियता का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि गुरुवार को महाकुंभ में वीएचपी की धर्मसंसद में साधु-संतों ने मुक्त कंठ से प्रधानमंत्री पद के लिए मोदी की उम्मीदवारी का समर्थन किया। धर्म संसद में करीब 5 हजार साधु-संत हिस्सा ले रहे हैं।
सूत्रों के अनुसार धर्म संसद में 2 प्रमुख संतों, कौशलेष प्रपन्नाचार्य, रामानुजाचार्य और वासुदेवाचार्य ने बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व से मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने की मांग की। संत रामानुजाचार्य ने कहा कि हम एनडीए या यूपीए किसी को नहीं चाहते। हम बस इतना चाहते हैं कि मोदी देश के अगले प्रधानमंत्री बनें। गुरुवार को मोदी का नाम मंच से उठते ही चारों तरफ बैठे कार्यकर्ताओं ने काफी देर तक 'मोदी जिंदाबाद' के नारे लगाए। हालांकि वीएचपी के महामंत्री प्रवीण तोगडि़या ने कहा था कि धर्म संसद में हिंदुत्व, राम मंदिर, गौ रक्षा, आतंकवाद, बांग्लादेशी घुसपैठ और मठ मंदिरों के सरकारी अधिग्रहण पर गहन चर्चा की जाएगी। लेकिन धर्म संसद शुरू होने के कुछ ही देर बाद मोदी के नाम को ले कर नारे लगाए गए। सभा में 'रामलला हम आएंगे, संसद में कानून बनवाएंगे' जैसे नारे भी लगाए गए।
बाकी संतों ने भी मोदी का समर्थन करते हुए कहा कि मोदी ने गुजरात में मुस्लिम बहुल इलाकों में मुसलमानों को टिकट दिए बिना बीजेपी को जीत दिलवाई। धर्म संसद में शामिल हुए कुछ संत यह महसूस करते हैं कि प्रधानमंत्री के रूप में मोदी की उम्मीदवारी के समर्थन से ही राम मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त होगा। इससे पहले वीएचपी के वरिष्ठ नेता अशोक सिंघल ने मोदी की उम्मीदवारी का समर्थन किया था। धर्म संसद में मोदी को बढ़ता समर्थन काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि धर्मसंसद में आरएसएस, वीएचपी और अन्य धार्मिक संगठनों के नेता हिस्सा ले रहे हैं। हाल ही में सिंघल ने कहा है कि मोदी नेहरू जितने ही लोकप्रिय हैं। मोदी की धर्म संसद में शामिल होने की चर्चा जोरों पर हैं। मोदी स्वयं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता रहे हैं, लेकिन हाल तक उनके और वीएचपी के बीच के रिश्ते तनावपूर्ण थे।
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मोदी पर बीजेपी का पसोपेश बरकरार
ReplyDeleteFeb 8, 2013, 09.00AM IST
विशेष संवाददाता॥ नई दिल्ली
डीयू में नरेंद्र मोदी ने अपनी जो छाप छोड़ी है, उससे पार्टी के कार्यकर्ताओं में जबर्दस्त उत्साह है लेकिन पार्टी के ज्यादातर नेता इस मामले में पूरी तरह से दुविधा में हैं। मोदी को पीएम बनाने के मुद्दे को लेकर पार्टी के भीतर औपचारिक तौर पर तो कोई बातचीत नहीं हो रही लेकिन अनौपचारिक तौर पर इस मसले पर मंथन चल रहा है। पार्टी नेताओं की मुसीबत यह है कि वे राजनीतिक मजबूरियों की खातिर इस मुद्दे पर अपनी बात भी सामने नहीं रख पा रहे हैं।
मोदी ने बुधवार को ही डीयू के एक कॉलेज में छात्रों को संबोधित किया था। उनके भाषण ने इन छात्रों को अपना मुरीद बना लिया है लेकिन पार्टी के नेताओं की इससे चिंता बढ़ी है। दिल्ली में बैठे पार्टी नेताओं का एक हिस्सा ऐसा है, जिसे यह पसंद नहीं है कि मोदी को दिल्ली लाया जाए परंतु जिस तरह से पार्टी पर कार्यकर्ताओं का दबाव बढ़ रहा है, उससे ये नेता भी खुलकर विरोध नहीं कर पा रहे। इसके बावजूद पार्टी भी दुविधा में है कि मोदी को क्या भूमिका दी जाए।
ध्रुवीकरण की चिंता : बीजेपी की चिंता यह है कि अगर पार्टी कार्यकर्ताओं के दबाव में पूरी पार्टी ही मोदी पर एकमत हो जाए तो उस स्थिति में भी वोटों के ध्रुवीकरण की चिंता रहेगी। दरअसल, मोदी के आने से हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण हो जाए तो भी जातिवाद पर वोट का बंटवारा होना तय है। दूसरी ओर मोदी के आने पर अगर मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण हो गया तो इसका सीधा फायदा कांग्रेस को मिलेगा। ऐसे में पार्टी इस मुद्दे पर भी गंभीरता से सोच रही है।
200 प्लस हों तो मोदी : बीजेपी नेताओं को यह साफ मालूम है कि अगर मोदी को लाया जाता है तो इससे उसके एनडीए के कई सहयोगी बिदक सकते हैं। ऐसे में बीजेपी नेताओं का मानना है कि अगर मोदी को लाकर पार्टी देश भर में लोकसभा की दो सौ से ज्यादा सीटें जीतती है तो ही मोदी का फायदा होगा। ऐसी स्थिति में अगर जेडीयू बिदकता भी है तो भी उसे छुटपुट दलों की मदद मिलेगी और वह सत्ता में आ सकती है। लेकिन अगर मोदी के आने के बावजूद इतनी सीटें नहीं आतीं तो यह स्थिति बीजेपी के लिए बेहद खतरनाक हो जाएगी।
प्रोजेक्ट ही न करें : बीजेपी के पास एक ऑप्शन यह है कि मोदी को पीएम ही प्रोजेक्ट न किया जाए और उन्हें चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बनाकर चुनाव मैदान में उतरा जाए। इस स्थिति में यह भी संदेश चला जाएगा कि मोदी अगले पीएम हो सकते हैं और बीजेपी को अपने सहयोगी खोने का डर भी नहीं रहेगा। पार्टी नेताओं का मानना है कि यह ऐसा विकल्प है, जिसे अपनाकर यह कहा जा सकता है कि बीजेपी की परंपरा है कि उसके चुने हुए सांसद ही पीएम चुनते हैं। लेकिन यहां इतना जरूर हे कि बीजेपी को उन असहज सवालों का सामना करना पड़ सकता है, जिनका सामना उसे करना पड़ेगा। मसलन, पिछली बार पार्टी ने एल. के. आडवाणी और उससे पहले अटल बिहारी वाजपेयी को ही पार्टी ने पीएम के तौर पर प्रोजेक्ट किया था।