From BBC Hindi....
जब कामकाजी दफ्तरों और शैक्षणिक संस्थानों में जातिगत आधार पर भेदभाव के मामले सामने आ रहे हैं, उसी समय में भारत के दलित युवा भेदभाव वाली परंपराओं को चुनौती भी दे रहे हैं.
इसी साल मई के महीने में गुजरात के राजकोट जिले के धोराजी इलाके में सामूहिक विवाह समारोह में 11 दलित दूल्हे शामिल थे. अपनी बारात में ये दलित लड़के घोड़ों पर बैठे हुए थे.
छोटे स्तर पर ही सही, लेकिन इस इलाके के लिए एक अहम बदलाव था क्योंकि अब तक यहां बारात में घोड़ों पर बैठने की परंपरा केवल सवर्णों में ही थी.
यही वजह है कि इस शादी समारोह को लेकर इलाके में जातिगत तनाव उत्पन्न हो गया था और इस आयोजन के दौरान पुलिस सुरक्षा मांगी गई थी.
इस सामूहिक विवाह के आयोजकों में शामिल योगेश भाषा ने बीबीसी को बताया कि दलित समुदाय यह बताना चाहता है कि वे अब किसी तरह का भेदभाव नहीं सहेंगे. योगेश के मुताबिक धारोजी इलाके के ज़्यादातर दलितों ने अच्छी शिक्षा हासिल की है.
मध्याह्न भोजन योजना यानी मिड डे मील शायद उन योजनाओं में सबसे ऊपर हो जो अक़्सर अपनी उपलब्धियों को लेकर नहीं बल्कि ख़ामियों और भ्रष्टाचार की वजह से चर्चित रहती है.
चाहे खाने की गुणवत्ता का सवाल हो, खाना बनाने में लापरवाही और भ्रष्टाचार का मामला हो या फिर खाना खाते समय छात्रों के साथ सामाजिक भेदभाव का, आए दिन ऐसी ख़बरें आती रहती हैं.
पिछले महीने बलिया ज़िले में कथित तौर पर दलित छात्रों को अलग खाना परोसने की ख़बर आई तो मिर्ज़ापुर में छात्रों को पौष्टिक भोजन के नाम पर सिर्फ़ नमक और रोटी खाने को दिया गया.
बलिया में तो ज़िलाधिकारी ने मौक़े पर पहुंचकर ख़बर को निराधार बताते हुए कुछ विरोधी नेताओं को ही आड़े हाथों लिया, वहीं मिर्ज़ापुर में अधिकारियों ने चार दिन बाद उसी पत्रकार के ख़िलाफ़ सरकारी काम में बाधा पहुंचाने का आरोप लगाते हुए क़ानूनी कठघरे में खड़ा कर दिया जिसने छात्रों को नमक रोटी देने की ख़बर दिखाई थी.
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