==વીવેકપંથ==
૨૬૦૦ વર્ષ પહેલાં ભારતમાં ચાર્વાક નામનો ઋષી અથવા ચાર્વાક નામનો વાદ થઈ ગયેલ. શરીરે નીરોગી રહેવું અને આનંદ પ્રમોદ કરવો એટલે કે ખાઓ પીઓ, મોજ મસ્તી કરો અને બીજાનું ભલું કરો એ એનો મુખ્ય ધ્યેય હતો.
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कोरोना संक्रमित लोगों के अंतिम संस्कार का विरोध, झारखंड में दो जगहों पर झड़प
Ravi Prakash/BBCCopyright: Ravi Prakash/BBC
रवि प्रकाश
राँची से, बीबीसी हिन्दी के लिए
झारखंड के खूँटी और जमशेदपुर में कोरोना संक्रमित लोगों की लाशों के अंतिम संस्कार को लेकर हुई झड़पों में कुछ पुलिस वालों को चोटें लगी हैं. उन्हें अस्पताल ले जाना पड़ा है.
पुलिस ने जमशेदपुर में 2 उपद्रवियों को गिरफ़्तार भी किया है.
दरअसल, जमशेदपुर में भुइयांडीह बर्निंग घाट में कोरोना से हुई मौत के बाद एक बुज़ुर्ग का शव लेकर उनका अंतिम संस्कार कराने पहुंची पुलिस पर लोगों ने पथराव कर दिया.
इसमें दो महिला पुलिस समेत कुछ पुलिसकर्मी घायल हो गए. इसके बाद काफ़ी समझाने के बाद वहाँ अंतिम संस्कार कराया जा सका.
वहीं, खूंटी के महादेव मंडा स्थित कब्रिस्तान में भी ऐसे ही एक शव को दफनाने आसपास के टोलों के लोगों ने विरोध किया. इसके बाद प्रशासनिक अधिकारियों की पहल पर वह शव रांची में दफनाया गया.
लॉकडाउन के बाद कैसे आत्मनिर्भर बने इस गाँव में लौटने वाले प्रवासी मजदूर
यह गुजरात के कच्छ का कुनारिया गांव है. देखने में साधारण से लगने वाले इस गांव के पास लॉकडाउन के दौरान की एक असाधारण कहानी है.
कोरोना वायरस की महामारी के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश की अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने के लिए आत्मनिर्भरता की बात की.
कुनारिया गांव लॉकडाउन के दरम्यान इसी आत्मनिर्भरता का एक उदाहरण बन गया है.
ज़्यादा जानने के लिए, देखें ये वीडियो
कोरोना से बचने के लिए है ये सोने का मास्क या दिखाने के लिए?
पुणे में रहने वाले शंकर कुराडे ने लगभग तीन लाख रुपये में सोने का मास्क बनवाया है.
इससे पहले महाराष्ट्र के ही एक शहर कोल्हापुर में एक शख़्स ने चांदी का मास्क बनवाया था जिसके बारे में सुनकर शंकर कुराडे को ये मास्क बनवाने का विचार आया.
वुसअत के वीडियो ब्लॉग में जानिए, पाकिस्तान में क्या होता है जब भारत से विवाद गहराता है.
ब्रेकिंग न्यूज़ताजमहल के दरवाज़े सैलानियों के लिए फिर से खुलेंगे पर शर्तों के साथ....
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तीन महीने की तालाबंदी के बाद ताज महल एक बार फिर से अपने चाहने वालों के लिए बाहें फैलाकर इंतज़ार कर रहा है. सत्रहवीं सदी की इस ऐतिहासिक इमारत के दरवाज़े सोमवार से खुलने जा रहे हैं.
लेकिन इस बार सैलानियों के लिए गाइडलाइंस जारी किए गए हैं जिसके तहत उन्हें हमेशा मास्क पहनकर रहना होगा, दूसरे लोगों से दूरी बनाकर रखनी होगी और इसकी चमकीली संगमरमर की सतह को सतह को छूने की इजाजत उन्हें नहीं होगी.
शर्तें और भी हैं. हर दिन केवल पांच हज़ार सैलानियों को ही ताजमहल का करीब से दीदार करने की इजाजत दी जाएगी. यहां आने वाले सैलानियों को दो समूहों में बांटा जाएगा. मुग़ल बादशाह शाहजहां ने अपनी बेग़म मुमताज़ की याद में ये मकबरा बनवाया था.
22 साल की मेहनत के बाद तैयार हुए इस मकबरे को देखने के लिए कभी-कभी 80 हज़ार लोग रोज़ आ जाते हैं.
BBCCopyright: BBC
भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय ने कहा है, "सभी ऐतिहासिक इमारतों और जगहों पर सैनिटाइज़ेशन, सोशल डिस्टेंसिंग और दूसरे हेल्थ प्रोटोकॉल्स के पालन किए जाएंगे."
सरकार ताज महल और दूसरी ऐतिहासिक इमारतों को फिर से खोलने जा रही है. इनमें नई दिल्ली स्थित लाल किला भी शामिल है.
इस बीच भारत में कोरोना संक्रमण का हर दिन एक नया रिकॉर्ड बन रहा है और पिछला रिकॉर्ड टूट रहा है.
रविवार सुबह जारी किए गए सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़ पिछले 24 घंटे में देश में कोरोना संक्रमण के 24,850 नए मामले दर्ज किए गए. इसके साथ ही देश में कोरोना संक्रमितों की कुल संख्या बढ़कर 673,165 पर पहुंच गई है. इनमें 244,814 सक्रिय मामले हैं जबकि 409,082 लोग संक्रमित होने के बाद ठीक हो गए.
लेकिन पिछले 24 घंटों में कोरोना महामारी के कारण देश में 613 लोगों की मौत भी हुई है. इस महामारी ने भारत में अब तक 19,628 लोगों की जान ले ली है. कोरोना संक्रमण के मामलों में भारत रूस से थोड़ा ही पीछे है.
ब्रेकिंग न्यूज़भारतः कोरोना संक्रमण का एक और रिकॉर्ड टूटा, 24 घंटे में 24850 नए मामले
स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार देश में कोरोना से सबसे ज़्यादा प्रभावित राज्य महाराष्ट्र में संक्रमितों की संख्या दो लाख से ज़्यादा हो गई है.
महाराष्ट्र में कोरोना से संक्रमितों की कुल संख्या 200,064 है जबकि 8671 लोगों की इस महामारी के चलते राज्य में मौत हो चुकी है.
तमिलनाडु में कोरोना संक्रमितों की कुल संख्या 107,001 है और राज्य में 1450 लोग इस बीमारी के कारण अपनी जान गंवा चुके हैं.
दिल्ली में कोरोना संक्रमण के मामले एक लाख के करीब पहुंचने पर हैं. वहां अभी संक्रमितों की कुल संख्या 97,200 है जबकि मरने वालों की संख्या 3004 हो चुकी है.
इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च ने रविवार को बताया कि चार जुलाई तक देश में 97,89,066 सैंपल्स की कोरोना जांच हो चुकी थी जिसमें शनिवार को केवल 248,934 सैंपल्स टेस्ट किए गए थे.
ओडिशाः लॉकडाउन के उल्लंघन के आरोप में दूल्हा समेत पांच गिरफ़्तार
ओडिशा पुलिस ने कोविड-19 से जुड़ी गाइडलाइंस के उल्लंघन के आरोप में दूल्हा समेत पांच लोगों को गिरफ़्तार कर लिया. ये मामला बरहामपुर ज़िले में दो जुलाई को एक शादी के दौरान का है.
सेंट्रल ज़ोन के डीआईजी सत्यब्रत भोई ने समाचार एजेंसी एएनआई से कहा, "कोविड-19 से जुड़ी गाइडलाइंस के उल्लंघन के आरोप में एक केस दर्ज किया गया है. एक होटल परिसर में शादी के कार्यक्रम में 50 से ज़्यादा लोग भाग ले रहे थे. उन लोगों ने मास्क के इस्तेमाल और सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों की अवहेलना की थी."
उन्होंने बताया, "गोपालपुर पुलिस थाने में आईपीसी की धारा 34, 188, 269, 270 और महामारी अधिनियम की धारा 3 के तहत मामला दर्ज किया गया है. समारोह में इस्तेमाल की गई दोनों गाड़ियों को ज़ब्त कर लिया गया है. गिरफ़्तार लोगों को अदालत में पेश किया जाएगा.
इस घटना के बाद मुख्यमंत्री कार्यालय ने भी ट्विटर पर कहा, "कोरोना महामारी के ख़िलाफ़ जारी लड़ाई में ओडिशा नाजुक दौर से गुजर रहा है. ये ज़रूरी है कि हम सभी राज्य सरकार की ओर से जारी दिशानिर्देशों और नियमों का पालन करें ताकि कोविड-19 की महामारी को फैलने से रोका जा सके. इसका उल्लंघन करने पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी."
चीन-ईरान की ‘लायन-ड्रैगन डील’ से क्यों नाख़ुश हैं ईरान के लोग?
बीबीसी मॉनिटरिंगटीम बीबीसी
चीन और ईरान के बीच एक समझौता हुआ है, जिसके बारे में विस्तार से अभी तक कोई ऐलान नहीं किया गया है. बताया जा रहा है कि दोनों देशों के बीच ये समझौता अगले 25 वर्षों तक मान्य होगा.
विशेषज्ञ और आम लोग इस सौदे के बारे में तरह-तरह की अटकलें लगा रहे हैं और अपनी राय ज़ाहिर कर रहे हैं.
हालांकि ईरान की आम जनता इसे लेकर निराशावादी नज़र आ रही है.
इसे ‘लायन-ड्रैगन डील’ इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि ईरान के कट्टरपंथी अख़बार ‘जवान’ ने इस समझौते की ख़बर प्रकाशित करते हुए यही शीर्षक लगाया था.
समझौता है क्या?
इस समझौते का सबसे पहले 23 जनवरी, 2016 को एक साझा बयान के ज़रिए उस वक़्त ऐलान किया गया था जब चीनी राष्ट्रपति शी ज़िनपिंग ईरान के दौरे पर गए थे.
ईरान की तसनीम समाचार एजेंसी के अनुसार, इस डील का अनुच्छेद-6 कहता है कि दोनों देश ऊर्जा, इंफ्रास्ट्रक्चर, उद्योग और तकनीक के क्षेत्र में आपसी सहयोग बढ़ाएंगे.
समाचार एजेंसी के अनुसार, “दोनों पक्ष अगले 25 वर्षों के लिए आपसी सहयोग बढ़ाने पर सहमत हुए हैं.”
ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्लाह ख़मेनेई ने चीनी राष्ट्रपति ज़िनपिंग से एक मुलाकात के दौरान ‘कुछ देशों की’, ख़ासकर अमरीका की वर्चस्वाद वाली नीति की ओर इशारा किया था.
उन्होंने कहा था, “इस स्थिति को देखते हुए स्वतंत्र देशों को एक-दूसरे का ज़्यादा सहयोग करना चाहिए. ईरान और चीन के बीच अगले 25 वर्षों तक के लिए हुए इस रणनीतिक समझौते का दोनों पक्ष गंभीरता से पालन करेंगे.”
ख़मेनेई के अलावा ईरानी राष्ट्रपति हसन रूहानी ने भी कई मौकों अमरीकी पाबंदियों के ख़िलाफ़ चीन के समर्थन और सहयोगी की तारीफ़ की है.
21 जून रूहानी ने एक कैबिनेट बैठक में कहा था कि ये समझौता, चीन और ईरान दोनों के लिए मूलभूत और इंस्फ़्राट्रक्चर से जुड़े प्रोजेक्ट्स में भागीदारी का मौका है. रूहानी ने कहा था कि उन्होंने चीनी पक्ष से बातचीत करने और बातचीत को अंतिम रूपरेखा देने की ज़िम्मेदारी विदेश मंत्री जवाद ज़रीफ़ को सौंपी है.
ऊर्जा के क्षेत्र में सहयोग
ईरानी अर्थशास्त्री अली असग़र ज़रगर ने ईरान की आईएलएनए समाचार एजेंसी को दिए एक अर्ध-आधिकारिक इंटरव्यू में कहा था कि ईरान, चीन और रूस के बीच तेल से जुड़ा कोई भी समझौता होने पर ऊर्जा, सुरक्षा और आर्थिक मामलों में मददगार साबित होगा.
ज़रगर ने कहा, “चीन अपनी नीति के तहत उन देशों को चुनता है जो किसी अन्य देश के प्रभाव में न हों. इसलिए, ईरान से चीन को स्वतंत्र रूप से मदद मिल सकती है. वहीं, दूसरी ओर चीन ने भी हमारी कुछ परियोजनाओं में हिस्सा लिया और इसमें उपनिवेशवादी लालच नहीं है. इसलिए, इस डील से दोनों देशों को फ़ायदा हो सकता है. चीन को इराक़ में ईरान की मौजूदगी से भी फ़ायदा मिल सकता है. ”
ज़रगर के मुताबिक़, चीन को जहां ऊर्जा संसाधनों की ज़रूरत है, वहीं ईरान को तकनीक और निवेश की ज़रूरत है, इसलिए ये समझौता दोनों देशों के हित में होगा.
चीन और ईरान बनाम अमरीका
ईरानी अख़बार 'जवान' ने अपनी एक टिप्पणी में लिखा है कि ये ईरान और चीन के बीच डील का सबसे अच्छा समय है क्योंकि मौजूदा वक़्त में अमरीका चीन के सामने ‘कमज़ोर’ महसूस करता है और चीन, अमरीका से ‘असुरक्षित’ महसूस करता है.
अख़बार लिखता है कि चीन की ‘अमरीका-विरोधी’ नीतियां भी समझौते के लिए फ़ायदेमंद हैं.
अख़बार ने ईरानी संसद मजलिस के स्पीकर मोहम्मद क़लीबफ़ के उस बयान का ज़िक्र किया है, जिसमें उन्होंने कहा था, “हमने देखा है कि कैसे ट्रंप प्रशासन दूसरे देशों की स्वतंत्रता और शासन में दखल देता है. अमरीका ने ईरान और चीन के साथ भी ऐसा ही किया है. हम इसके गवाह रहे हैं. इसलिए चीन के साथ क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय सहयोग अनिवार्य है. हम इसे नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते.”
ईरानी सरकार के प्रवक्ता अली रबीई ने 23 जून को कहा था कि इस समझौते के खाके को अंतिम रूप दिया जा चुका है.
इमेज कॉपीरइटGETTY IMAGESImage captionअमरीका बनाम चीन
उन्होंने कहा था, “यह समझौता साबित करता है कि अमरीका की ईरान को अलग-थलग करने और इसके अंतरराष्ट्रीय सम्बन्धों को छिन्न-भिन्न करने की नीति विफल रही है.”
ईरान की नीति बदल रही है?
वरिष्ठ ईरानी पत्रकार अहमद ज़ीदाबादी का मानना है कि ‘ईस्ट पॉलिसी’ की तरफ़ नहीं मुड़ रहा है बल्कि अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था का हिस्सा बन रहा है.
अहमद लिखते हैं, “चीन दुनिया के साथ दुश्मनी के बजाय स्थिरता पर ज़ोर देता है. यह ईरान, सऊदी अरब और इसराइल से मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध रखना चाहता है.”
साथ ही अहमद को ये भी लगता है इस समझौते की वजह से ईरान की अपनी नीतियां बदल जाएंगी और वो चीन की नीतियों पर चलने को मजबूर हो जाएगा.
अहमद पूछते हैं कि क्या ईरानी अधिकारियों के चीन के साथ यह समझौता अमरीका और यूरोप को धमकाने के लिए किया ताकि वो उस पर बाद-बाद पाबंदी लगा देने वाली अपनी नीतियों में नर्मी लाएं?
अहमद ये अनुमान भी लगाते हैं कि ईरानी सरकार ने यह समझौता शायद इसलिए किया होगा क्योंकि उसे अपनी नीतियों में बदलाव करने के अलावा कोई और विकल्प नज़र नहीं आ रहा होगा.
इमेज कॉपीरइटGETTY IMAGESImage captionचीनी राष्ट्रपति शी ज़िनपिंग के साथ ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी
ये डील इतनी ‘गोपनीय’ क्यों है?
इस समझौते के बारे में विस्तार से जानकारी न दिए जाने की वजह से ईरानी सरकार की आलोचना भी हो रही है. ईरान के पूर्व राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद ने 27 जून को एक रैली में कहा था, “जनता की इच्छा और मांगें जाने बाने किसी विदेशी पक्ष के साथ कोई भी समझौता करना देशहित के ख़िलाफ़ और अमान्य है.”
उन्होंने डील की ‘अस्पष्टता’ और के ईरानी सरकार के ‘टतथ्यों को गोपनीय रखे जाने’ वाले रवैये की आलोचना की. अहमदीनेजाद ने सरकारी अधिकारियों से अपील की कि वो देश को इस समझौते के बारे में पूरी जानकारी दें.
अहमदीनेजाद के आरोपों के जवाब में ईरानी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अब्बास मौस्वी ने कहा कि चीन की मंज़ूरी के बाद मंत्रालय इस समझौते का पूरा ब्योरा प्रकाशित कर सकता है. उन्होंने इन आरोपों से इनकार कर दिया कि डील के प्रावधानों में किसी भी तरह की ‘अस्पष्टता है.
अर्थशास्त्री मोहसिन शरीयातिना कहते हैं कि समझौते से ये साबित होता कि ईरान अब पूरब की तरफ़ नर्मी वाली रणनीति अपना रहा है. उनका मानना है कि इस डील का रोडमैप रणनीतिक सहयोग है जो ‘अलायंस’ से अलग है. मोहसिन का मानना है कि चीन और ईरान के विचार, नीतियां और संविधान असल में काफ़ी अलग हैं.
ईरान के लोग क्या कह रहे हैं?
ईरान की जनता इस डील की ख़बरों से ख़ुश नज़र नहीं आ रही है. सोशल मीडिया पर लोग इस समझौते के ‘चीनी उपनिवेशवाद’ की शुरुआत बता रहे हैं.
सोशल मीडिया यूज़र्स ने पिछले 24 घंटों में #iranNot4SELLnot4RENT (ईरान बिकने के लिए और किराए के लिए नहीं है) हैशटैग के साथ 17 हज़ार से ज़्यादा बार ट्वीट किया है.
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